प्रिय मित्र,
हम न जाने कब से इस चिट्ठी की सामग्री मन-ही-मन गढ़ रहे हैं ।
लेकिन यह पता नहीं था कि इसे लिखने का मौका आएगा या नहीं। देखिए! आज वह
अवसर सामने है | नागपुर में कलात्मक और सामाजिक सृजन के नए रास्ते खोलने वाला
एक मंच, एक मंडप तैयार हो रहा है । इस सामूहिक प्रयास में हम सभी को अपनी-अपनी
भूमिका निभानी पड़ेगी। समय, कौशल, साधन-सामग्री, धन... जिस किसी माध्यम हो सके ।
कला और रंगमंच से स्नेह रखने वाले सब मित्रों की यह हसरत सालों-साल रही है कि शहर में
अपना एक थिएटर हो, अपना ही रंगमंच ! एक ऐसा ठिकाना जहाँ कला और सामाजिकता के
प्रयोग साथ-साथ हो सकें । कलाकारों पर यह दबाव न हो कि वे बाजारू रचनाओं के सहारे टिकट
बेच के भीड़ इकट्ठी करें, और दर्शक इतने दूर न बैठें कि उन्हें निष्क्रिय उपभोक्ता जैसा एहसास हो।
जहाँ कला सामाजिक चिंताओं से रूबरू हो, पर लीला-भाव के साथ, किसी तरह की सैद्धांतिक
गंभीरता के वजन तले नहीं । जहाँ समाज में सेवा और सहजीवन का काम करने वालों को
कला में समाधान और साधन मिले, केवल मनोरंजन नहीं । नागपुर में कला और सामाजिक
सृजन का एक सशक्त केंद्र हो, वह भी इतना अनौपचारिक कि यारी के अड्डे का काम भी दे ।
ऐसा एक ठीया महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि की उदारता से हमें मिल गया है। नागपुर के बजाज
नगर में स्थित कस्तूरबा भवन का कुछ हिस्सा इन्होंने निरूपक प्रतिष्ठान को सौंपा है। इस भवन
का कायाकल्प कर इसमें 175 की क्षमता का एक थिएटर, 125 की क्षमता का ब्लैक बॉक्स की तर्ज
पर का एक प्रायोगिक थिएटर, विश्राम गृह, जलपान गृह इत्यादि बनाने का काम जोर-शोर से शुरू
हो चुका है । यह सामाजिक कार्य है, जिसका यश, अपयश सामाजिक रूप से बँटे और साधन भी
सामाजिक रूप से ही जोड़े जाएँ । तीन तरह से साधन- सहयोग की जरूरत होगी:-
एक: आर्थिक। इमारत पुरानी है और आज की जरूरतों के लिए संगत नहीं है।
सभागृह को नाट्य प्रयोगों के हिसाब से तैयार करना है, दर्शक दीर्घा को नये सिरे से बैठाना है ।
मरम्मत के बहुत से काम होने हैं, जो शुरू हो गये हैं। आगे चल के जगह का किराया, रखरखाव
व अन्य खर्चों के साथ साथ कलाकारों को आजीविका और मानदेय भी देना होगा ।
हम मान के चल रहे हैं कि इन बड़े खर्चों को पूरा करने में आप
जैसे मित्रों का सहयोग मिलेगा ।
दोः माल - सामान । जीर्णोद्धार में बहुत-सी सामग्री की आवश्यकता होगी। इसमें
धातु - लकड़ी की चीजों से ले कर मंच के पर्दे और दीवारों पर लगने वाला पेंट तक शामिल हैं ।
ध्वनि और प्रकाश, के तरह-तरह के यंत्र लगेंगे थिएटर को तैयार करने के लिए। फर्श का काम
होना है, कूलर- ए. सी. और शौचालय भी तैयार करने हैं और ग्रीन रूम से ले कर मंच तक।
इसमें लगने वाली सामग्री की सूची तैयार कर के हम अपने प्रियजनों में चलाएँगे ।
जो कोई माल-मसौदे के साथ सहयोग करेगा, वह इमारत में ही नहीं, कला में भी मदद देगा,
कला को उसके सामाजिक स्वरूप में लाएगा।
तीन: सूझबूझ ।कई ऐसे काम होने हैं जिनमें विशेष ज्ञान लगेगा, दक्षता लगेगी।
आर्किटेक्ट से ले कर फर्श तैयार करने वाले, लकड़ी-धातु और बिजली का काम जानने वाले,
तरह- तरह की यांत्रिकी-इंजीनियरी जानने वाले। पलस्तर और गारा-चूना भी और साज-सज्जा भी !
ऐसी हर कठिन विधा जिसमें बढ़िया काम होने से एक सुंदर और उपयोगी सभागृह तैयार हो
सकता है। धन-साधन जोड़ने में खास हुनर लगता है। अच्छे लोगों को जोड़ना तो सबसे जरूरी
और कई बार सबसे कठिन काम होता है ।
हो सकता है कि इस समय आप इनमें से किसी एक श्रेणी में ही सहयोग कर सकते हैं!
हो सकता है तीनों में! हमें फोन पर या मिलकर बताएं ।
साधन तो जैसे-तैसे आ ही जाएँगे, लेकिन आपकी उपस्थिति और प्यार का कोई पर्याय नहीं है
। हम मान के चलते हैं कि मरम्मत के काम के दौरान भी इस ठीये पर आपका आना- जाना
लगा रहेगा । और यह भी कि जब काम पूरा हो जाएगा, तब आप मेहमानों के स्वागत के लिए
मेजबान की भूमिका में खड़े मिलेंगे।
आपके जवाब के इंतजार में,
सप्रेम